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संबंधबोधक अव्यय (Sambandhbodhak Avyay) की सम्पूर्ण जानकारी

Table of Contents

अविकारी शब्द या अव्यय शब्द (Avaya Shabd)

वह शब्द जिसके रूप में लिंग / वचन / पुरुष के आधार पर कोई परिवर्तन नहीं होता उस शब्द को अविकारी शब्द या अव्यय शब्द कहते हैं।

अव्यय शब्द के उदाहरण

  • घोड़ा तेज़ दौड़ता है।
  • घोड़ी तेज़ दौड़ती है।
  • घोड़े तेज़ दौड़ते हैं।
  • तुम तेज़ दौड़ते हो।
  • वह तेज़ दौड़ता है।
  • हम तेज़ दौड़ते हैं।
  • वह तेज़ दौड़ती है।

उपरोक्त सभी उदाहरणों में आप देख सकते हैं की तेज़ शब्द अपरिवर्तित रहता है.

अविकारी शब्द के भेद

  1. संबंधबोधक अव्यय
  2. समुच्चय बोधक अव्यय
  3. विस्मयादि बोधक अव्यय
  4. क्रियाविशेषण अव्यय
Sambandhbodhak Avaya
Sambandhbodhak Avyay

संबंधबोधक अव्यय किसे कहते हैं – Sambandhbodhak Avyay Kise Kahte hai.

संबंधबोधक अव्यय की परिभाषा – संबंध का बोध करवाने वाले अव्यय पदों को संबंधबोधक अव्यय कहते हैं। इनका प्रयोग दो संज्ञा या सर्वनाम पदों को जोड़ने के लिए किया जाता है। जैसे: हेतु, लिए, कारण, मारे, चलते, संग, साथ, सहित, बिना, बगैर, अलावा, अतिरिक्त, वास्ते, बिन, बदले, पलटे, आगे, पीछे, इधर, उधर पास-पास इत्यादि संबंधबोधक अव्यय हैं।

हिंदी में बहुत से संबंधबोधक अव्यय उर्दू और संस्कृत से आए हैं. जैसे:

  • उर्दू से आए हुए संबंधबोधक अव्यय – रूबरू, नजदीक, सबब, बदौलत, बाद, तरह, खिलाफ, खातिर, बाबत, जरिए, बदले, सिवा इत्यादि।
  • संस्कृत से आए हुए संबंधबोधक अव्यय – समक्ष, सम्मुख, निकट, समीप, कारण, उपरांत, अपेक्षा, भांति, विपरीत, निमित्त, हेतु, द्वारा, विषय, बिना, अतिरिक्त इत्यादि।

संबंधबोधक अव्यय के उदाहरण 

  • सीता के बिना राम परेशान हैं।
  • धन के बिना किसी का काम नहीं चलता।
  • रात भर जागना अच्छा नहीं होता।
  • जल के बिना जीवन संभव नहीं है।
  • वह चौराहे तक पैदल गया था।
  • चंचल मित्रों के साथ शिमला घूमने गई।

कभी-कभी समय और स्थान का बोध करवाने वाले अव्यय पद क्रिया विशेषण भी होते हैं और संबंधबोधक अव्यय भी। यदि किसी वाक्य में कोई अव्यय पद स्वतंत्र रूप से क्रिया की विशेषता बताता है तो उसे क्रिया विशेषण कहते हैं; लेकिन जब इनका प्रयोग संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ होता है तो उसे संबंधबोधक अव्यय कहेंगे।

संबंधबोधक अव्यय के उदाहरण

  • श्याम यहाँ रहता है। ( क्रिया विशेषण )
  • श्याम रमेश के यहाँ रहता है। ( सम्बन्धबोधक अव्यय )
  • वह काम पहले करना चाहिए। ( क्रिया विशेषण )
  • यह काम जाने से पहले करना चाहिए। ( सम्बन्धबोधक अव्यय )

यह भी पढ़ें: क्रिया किसे कहते हैं

सम्बन्ध बोधक अव्यय के भेद – Sambandhbodhak Avyay Ke Bhed

  1. प्रयोग के आधार पर
  2. व्युतप्ति के आधार पर
  3. काल के आधार पर

प्रयोग के आधार पर संबंधबोधक अव्यय के भेद

प्रयोग के आधार पर सम्बन्धबोधक अव्यय दो प्रकार के होते हैं।

  1. संबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय
  2. अनुबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय

संबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय – जिन सम्बन्धबोधक अव्ययों का प्रयोग किसी कारक चिन्ह के बाद किया जाता है उन्हें संबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं। किसी वाक्य में संज्ञा शब्दों की विभक्तियों के पीछे इन अव्यय पदों का प्रयोग किया जाता है. जैसे: घर के बिना, भोजन से पहले आदि।

संबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय के उदाहरण

  • ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं है।
  • विधालय के सामने / बाहर / कुछ लोग खड़े थे।
  • हमें घर से बाहर निकलने से पहले माता पिता को प्रणाम करना चाहिए।
  • रवि मित्रों के साथ विदेश घूमने गया है।
  • उसे पत्र द्वारा सूचित करो।

अनुबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय – जिन सम्बन्धबोधक अव्ययों का प्रयोग संज्ञा के विकृत रूप के साथ किया जाता है उन्हें अनुबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे: सखियों सहित, पुत्रों समेत आदि।

अनुबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय के उदाहरण

  • हमें सफलता मिलने तक प्रयास करना चाहिए।
  • रवि मित्रों सहित शिमला घूमने गया है।

व्युत्पत्ति के आधार पर संबंधबोधक अव्यय के भेद

व्युत्पत्ति के आधार पर सम्बन्धबोधक अव्यय दो प्रकार के होते हैं।

  1. मूल संबंधबोधक अव्यय
  2. यौगिक संबंधबोधक अव्यय

मूल संबंधबोधक अव्यय – वे संबंधबोधक अव्यय जिनमें किसी अन्य शब्द का योग नहीं होता है उन्हें मूल संबंधबोधक अव्यय कहते हैं. हिंदी में मूल संबंधबोधक अव्यय बहुत कम हैं. जैसे: बिना, पर्यंत, नाईं, पूर्वक इत्यादि।

यौगिक संबंधबोधक अव्यय – वे संबंधबोधक अव्यय जिनका निर्माण दो शब्दों को मिलाकर होता है उन्हें यौगिक संबंधबोधक अव्यय कहते हैं. जैसे: मारफत, नाम, समान, सरीखा, भीतर, बाहर, पास, परे, मारे, जान, करके।

काल के आधार पर संबंधबोधक अव्यय के भेद

काल के आधार पर संबंधबोधक अव्यय के 13 भेद होते हैं. इन सभी भेदों से सम्बंधित व्याकरण के कोई नियम नहीं है इसलिए काल के आधार पर सम्बन्धबोधक अव्यय के वर्गीकरण की ज़रूरत नहीं होती है.

  1. कालवाचक संबंधबोधक अव्यय
  2. स्थानवाचक संबंधबोधक अव्यय
  3. दिशावाचक संबंधबोधक अव्यय
  4. साधनवाचक संबंधबोधक अव्यय
  5. हेतुवाचक संबंधबोधक अव्यय
  6. विषयवाचक संबंधबोधक अव्यय
  7. व्यतिरेकवाचक संबंधबोधक अव्यय
  8. विनिमयवाचक संबंधबोधक अव्यय
  9. सादृश्यवाचक संबंधबोधक अव्यय
  10. विरोधवाचक संबंधबोधक अव्यय
  11. सहचारवाचक संबंधबोधक अव्यय
  12. संग्रहवाचक संबंधबोधक अव्यय
  13. तुलनवाचक संबंधबोधक अव्यय

समुच्चयबोधक अव्यय

समुच्चय का अर्थ समूह होता है। वह अव्यय पद जो एक वाक्य का संबंध दूसरे वाक्य से करवाता है उसे समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। किसी वाक्य में प्रयुक्त उपवाक्यों को जोड़ने के लिए समुच्चयबोधक अव्यय का प्रयोग किया जाता है। जैसे: लेकिन, किंतु, परंतु, और, अथवा, या, तथा, व, एवं, बल्कि, इसलिए, जो, जिसे, जिन्हें, जैसे-जैसे इत्यादि समुच्चयबोधक अव्यय शब्द हैं।

एक या एक से अधिक उपवाक्य संयुक्त वाक्य एवं मिश्रित वाक्य में होते हैं। अतः संयुक्त वाक्य एवं मिश्रित वाक्य में प्रयुक्त उपवाक्यों को जोड़ने वाले योजक शब्द समुच्चयबोधक अव्यय होते हैं।

समुच्चयबोधक अव्यय के उदाहरण

  • हवा चली और पानी गिरा।
  • यदि सूर्य न हो तो कुछ भी न हो।

समुच्चयबोधक अव्यय के दो भेद होते हैं

  1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
  2. व्याधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय

समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय

जिन अव्ययों के द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े जाते हैं उन्हें समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं. इसमें योजक पद एक ही होता है.

समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय के उदाहरण

  • बैठ जाओ या चले जाओ.
  • नवीन खेलता है जबकि दीपक पढता है.

व्याधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय

जिन अव्यय पदों के प्रयोग से किसी एक वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते है. उन्हें व्याधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते है.

व्याधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय के उदाहरण

  • यदि तुम पढोगे तो सफल हो जाओगे।
  • यद्यपि मैंने मेहनत की थी तथापि मुझे सफलता नहीं मिली।

विस्मयादिबोधक अव्यय

आश्चर्य या अचरज का बोध करवाने वाले अव्यय पदों को विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं। आश्चर्य या अचरज के अतिरिक्त ईर्ष्या के भाव, दुख के भाव तथा खुशी के भाव इत्यादि का बोध करवाने वाले अव्यय पद भी विस्मयादिबोधक अव्यय होते हैं। इन अव्ययों का संबंध वाक्य से नहीं होता है बल्कि ये वक्ता के भाव को दर्शाते हैं।

वक्ता के विभिन्न मनोविकारों को दर्शाने के लिए भिन्न-भिन्न विस्मयादिबोधक प्रयुक्त किए जाते हैं।

  • हर्षबोधक – आहा! शाबाश! जय! जयति!
  • शोकबोधक – आह! ऊहा! हा हा! हाय! दइया रे!  बाप रे! त्राहि त्राहि! राम राम! हा राम!
  • आश्चर्यबोधक – वाह! हैं! ऐ! ओहो! क्या!
  • अनुमोदनबोधक – ठीक! वाह! अच्छा! शाबाश! हां हां!
  • तिरस्कारबोधक – छि:! हट! अरे! चुप!
  • स्वीकारबोधक – हाँ! जी हाँ! अच्छा! जी! ठीक! बहुत अच्छा!
  • संबोधनघोतक – अरे! रे! अजी! लो! क्या! अहो! क्यों!

विस्मयादिबोधक अव्यय के उदाहरण

किसी वाक्य को कहते समय वक्ता का जो मनोभाव होता है वही विस्मयादिबोधक अव्यय का उपभेद भी मान लिया जाता है।

  • वाह! कितना स्वादिष्ट भोजन है। (विस्मयवाचक विस्मयादिबोधक अव्यय)
  • आहा! में पास हो गया. (हर्षवाचक विस्मयादिबोधक अव्यय)
  • अरे! तुम वहाँ क्यों बैठे हो. (सम्बोधनवाचक विस्मयादिबोधक अव्यय)
  • अजी! सुनते हो. (सम्बोधनवाचक विस्मयादिबोधक अव्यय)
  • जी हाँ! आप जा सकते हैं. ( अनुमोदनवाचक विस्मयादिबोधक अव्यय)

आज के इस लेख में हमने आपको संबंधबोधक अव्यय के बारे में बताया है. यह लेख प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए लिखा गया है.

धन्यवाद

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